वृक्ष आँगन का ( पूर्णिका )
"वृक्ष आँगन का"* पूर्णिका
वृक्ष हमारे आँगन का, महकता है,
खुशियां लुटाता आँगन में, लहकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
रुतबा है उसका, हमारे घर आँगन में,
नीम कड़वा, परवा करता गमकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
विद्या बुद्धि से भर देता, लालन पालन में,
वृक्ष वो विद्या का, खुशी से लहकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का....
पूजते हैं हम उनको, हर दिन हर त्यौहारों में,
तुलसी, पीपल, बरगद से, जीवन लहकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
देवताओं का कोटि कोटि, वास होता इनमें,
खुशहाली लाएं हर घर में, जीवन महकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
राही को छाया देते, ग्रीष्म की तपन में,
हार थक कर इंसा दो पल, बैठता रुकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
पंछी वृंद सांझ ढलते ही, जा छुपते नीड़ में,
भौर होते ही बयार संग, चुनमुन जीवन महकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....
जीवन में हो समरसता, प्रेम प्यार दिल में 'हेम',
गुलशन होता गुलज़ार, फूलों सा जीवन चहकता है,
वृक्ष हमारे आँगन का.....।
पूर्णिकाकार- रजनी कटारे "हेम"
जबलपुर म. प्र.
नोट- विश्व पर्यावरण दिवस पर 🙏
Anjali korde
07-Jun-2024 07:00 AM
Amazing
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